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पा॒व॒कव॑र्चाः शु॒क्रव॑र्चा॒ अनू॑नवर्चा॒ उदि॑यर्षि भा॒नुना॑ । पु॒त्रो मा॒तरा॑ वि॒चर॒न्नुपा॑वसि पृ॒णक्षि॒ रोद॑सी उ॒भे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pāvakavarcāḥ śukravarcā anūnavarcā ud iyarṣi bhānunā | putro mātarā vicarann upāvasi pṛṇakṣi rodasī ubhe ||

पद पाठ

पा॒व॒कऽव॑र्चाः । शु॒क्रऽव॑र्चाः । अनू॑नऽवर्चाः । उत् । इ॒य॒र्षि॒ । भा॒नुना॑ । पु॒त्रः॑ । मा॒तरा॑ । वि॒ऽचर॑न् । उ॒प॑ । अ॒व॒सि॒ । पृ॒णक्षि॑ । रोद॑सी॒ इति॑ । उ॒भे इति॑ ॥ १०.१४०.२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:140» मन्त्र:2 | अष्टक:8» अध्याय:7» वर्ग:28» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:11» मन्त्र:2


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पावकवर्चाः) पवित्रकारक दीप्तिवाला (शुक्रवर्चाः) शुभ्र तेजयुक्त (अनूनवर्चाः) पूर्ण तेजस्वी (भानुना-उत् इयर्षि) उपासक के अन्तःकरण में स्वप्रकाश से उदय होता है (पुत्रः-मातरा-विचरन्) पुत्र जैसे माता पिताओं के प्रति विचरता हुआ (उप अवसि) निकटता से रक्षा करता है, ऐसे तू रक्षा करता है (उभे रोदसी पृणक्षि) दोनों द्यावापृथिवी-द्युलोक और पृथिवीलोक की रक्षा करता है॥ २॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा पवित्रकारक दीप्तिवाला, शुभ्र तेजवाला, पूर्ण तेजवाला उपासक के अन्दर प्रकाशित होता है, माता पिता के प्रति पुत्र जैसे रक्षा करता है, वैसे द्युलोक और पृथिवीलोक को तू पालता है॥ २॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पावकवर्चाः) पवित्रकारदीप्तिमान् (शुक्रवर्चाः) शुभ्रतेजोयुक्तः (अनूनवर्चाः) अन्यूनतेजस्वी (भानुना-उत् इयर्षि) उपासकस्यान्तःकरणे स्वप्रकाशेन उद्गच्छसि-उदेषि (पुत्रः-मातरा विचरन्-उप अवसि) पुत्रो यथा मातापितरौ प्रति विचरन्-नैकट्येन रक्षति (उभे रोदसी पृणक्षि) द्वौ द्यावापृथिव्यौ पालयसि ॥२॥